जयहरीखाल : भक्त दर्शन राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, जयहरीखाल के जंतु विज्ञान विभाग द्वारा आज विश्व गौरैया दिवस के उपलक्ष्य में एक विशेष गोष्ठी का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य गौरैया के संरक्षण के प्रति जागरूकता फैलाना और छात्र-छात्राओं को पर्यावरण संरक्षण के प्रति प्रेरित करना था।
कार्यक्रम की शुरुआत महाविद्यालय की प्राचार्य प्रो. डॉ. एल.आर. राजवंशी द्वारा की गई। उन्होंने अपने संबोधन में गौरैया के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा, “गौरैया न केवल हमारे पर्यावरण का अभिन्न अंग है, बल्कि यह हमारी संस्कृति और सामाजिक जीवन का भी प्रतीक है। इसके संरक्षण के लिए हमें छोटे-छोटे प्रयास करने होंगे।”
इस अवसर पर छात्र-छात्राओं ने वेस्ट प्रोडक्ट का उपयोग करके गौरैया के लिए घोंसले बनाए और गौरैया संरक्षण के लिए जागरूकता अभियान चलाने का संकल्प लिया। इसके अलावा, भाषण, कविता और पोस्टर प्रतियोगिताओं का आयोजन भी किया गया, जिसमें छात्रों ने गौरैया के महत्व और उसके संरक्षण के बारे में अपने विचार साझा किए।
जंतु विज्ञान विभाग की प्रभारी श्रद्धा भारती ने गौरैया के संरक्षण के लिए आवश्यक कदमों पर चर्चा की और छात्रों को इस दिशा में सक्रिय भूमिका निभाने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने कहा, “गौरैया की घटती संख्या चिंता का विषय है, लेकिन हमारे छोटे-छोटे प्रयास इसे बचाने में मददगार साबित हो सकते हैं।”
जंतु विज्ञान के प्राध्यापक डॉ. मोहन कुकरेती ने एक प्रेजेंटेशन के माध्यम से गौरैया के व्यवहार और संरक्षण पर विस्तृत जानकारी दी। उन्होंने बताया कि शहरीकरण और पर्यावरणीय परिवर्तनों के कारण गौरैया की संख्या में तेजी से कमी आई है, लेकिन सही उपायों से इसे रोका जा सकता है।
डॉ. द्विवेदी ने पहाड़ी क्षेत्रों में गौरैया की घटती संख्या पर गंभीर चिंता व्यक्त की और इस दिशा में तत्काल कदम उठाने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा, “पहाड़ी क्षेत्रों में गौरैया की संख्या लगातार घट रही है, जो एक गंभीर संकेत है। हमें इसे बचाने के लिए सामूहिक प्रयास करने होंगे।”
इस कार्यक्रम में महाविद्यालय के छात्र छात्राएं छात्रा नेहा, सिमरन, कंचन, मिहिका, प्रेरणा, दिव्यकांशी, सचिन, हिमांशु और वर्षा सहित कई छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे। कार्यक्रम ने न केवल छात्रों को गौरैया संरक्षण के प्रति जागरूक किया, बल्कि उन्हें पर्यावरण संरक्षण के लिए प्रेरित भी किया। यह आयोजन शैक्षणिक और सामाजिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण रहा और गौरैया संरक्षण की दिशा में एक सार्थक कदम साबित हुआ।

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