मसूरी। उत्तराखंड राज्य आंदोलन के जननायक और ‘पहाड़ के गांधी’ कहे जाने वाले इंद्रमणि बडोनी की 100वीं जयंती (24 दिसंबर 2025) के अवसर पर बनाई जा रही विशेष डॉक्यूमेंट्री ‘उत्तराखंड के जननायक इन्द्रमणि बडोनी’ का गुरुवार को मसूरी के ऐतिहासिक शहीद स्थल पर फिल्मांकन हुआ। इस दौरान प्रसिद्ध गढ़वाली लोकगीत ‘कु होलु’ सहित कई महत्वपूर्ण दृश्य कैमरे में कैद किए गए।
फिल्म का मुहूर्त शॉट पूर्व मसूरी पालिका अध्यक्ष मनमोहन सिंह मल्ल और सामाजिक कार्यकर्ता गिरीश ढौंडियाल ने क्लैप देकर किया। डॉक्यूमेंट्री आगामी मसूरी विंटर लाइन कार्निवाल में प्रदर्शित की जाएगी और 24 दिसंबर को बडोनी की जन्म शताब्दी पर इसका भव्य प्रीमियर प्रस्तावित है।
“नई पीढ़ी तक पहुंचाना चाहते हैं बडोनी का संघर्ष”
फिल्म के निर्देशक प्रदीप भंडारी ने बताया, “इंद्रमणि बडोनी उत्तराखंड राज्य के सच्चे जननायक थे। आज कई बच्चे-युवा नहीं जानते कि राज्य बनने में उनका कितना बड़ा योगदान था। हमारी डॉक्यूमेंट्री उनके जीवन संघर्ष, गांधीवादी विचारधारा और अलग राज्य आंदोलन में भूमिका को सामने लाएगी।”
उन्होंने शिक्षा विभाग पर भी सवाल उठाया कि स्कूलों के पाठ्यक्रम में बडोनी या अन्य राज्य आंदोलनकारियों के योगदान को शामिल नहीं किया गया है। प्रदीप भंडारी इससे पहले गढ़वाली संस्कृति पर आधारित चर्चित फिल्म ‘पितृ कूड़ा’ बना चुके हैं।
क्यों चुना गया ‘कु होलु’ गीत?
निर्देशक ने बताया कि पुराने समय में पहाड़ों में मीडिया नहीं था। जनसंदेश का काम घड़िया और लोकगीत ही करते थे। ‘कु होलु’ गीत में बडोनी के जीवन और संघर्ष की झलक मिलती है, इसलिए इसे फिल्म का मुख्य हिस्सा बनाया गया है।
कौन थे इंद्रमणि बडोनी?
- जन्म: 24 दिसंबर 1925, अखोड़ी (तत्कालीन टिहरी रियासत)
- गांधीवादी विचारधारा से प्रभावित, अमेरिकी अखबार ‘द वाशिंगटन पोस्ट’ ने उन्हें ‘माउंटेन गांधी’ की उपाधि दी
- 1967, 1969 और 1977 में उत्तर प्रदेश विधानसभा के लिए चुने गए
- 1977 में जनता पार्टी की लहर में भी निर्दलीय जीतकर कांग्रेस-जनता पार्टी उम्मीदवारों की जमानत जब्त कराई
- उत्तराखंड राज्य आंदोलन के सबसे बड़े जननेता, हालांकि राज्य बनता देखने से पहले 1999 में निधन हो गया
शहीद स्थल पर फिल्मांकन के दौरान मौजूद लोगों में बडोनी के परिजन, उत्तराखंड आंदोलनकारी और स्थानीय नागरिक शामिल थे। सभी ने इसे बडोनी को सच्ची श्रद्धांजलि बताया। निर्देशक प्रदीप भंडारी का कहना है, “हम चाहते हैं कि उत्तराखंड का बच्चा-बच्चा इंद्रमणि बडोनी को जाने, उनके संघर्ष से प्रेरणा ले और अपनी संस्कृति-इतिहास से जुड़े।”

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