22 November 2024

श्रावणी पूर्णिमा के उपलक्ष्य में संस्कृत सप्ताह का हुआ शुभारंभ

 
कोटद्वार  । राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय कोटद्वार में संस्कृत विभाग के तत्वावधान में श्रावणी पूर्णिमा के उपलक्ष्य में संस्कृत सप्ताह का शुभारंभ किया गया जिसमें विभिन्न कार्यक्रमों, संस्कृत संभाषण, गायन, वादन, छंद परिचय, संधि परिचय इत्यादि के द्वारा संस्कृत विषय का छात्र छात्राओं को ज्ञान कराया जाएगा ।महाविद्यालय के प्राचार्य प्रोफेसर डीएस नेगी , वरिष्ठ प्राध्यापक प्रो एमडी कुशवाहा, आगंतुक महानुभाव संस्कृत भारती पौड़ी जनपद के संयोजक रमाकांत कुकरेती, प्रधानाचार्य कण्वघाटी इंटर कॉलेज कोटद्वार, खंड संयोजक कुलदीप मैंदोला, संस्कृत विभागाध्यक्ष डॉ अरुणिमा मिश्रा, विभागीय प्राध्यापक डॉ रोशनी असवाल, डॉ मनोरथ प्रसाद नौगाई तथा डॉ प्रियम अग्रवाल द्वारा संयुक्त रूप से दीप प्रज्वलन कर किया गया। 
इसी क्रम में संस्कृत विभाग के छात्र छात्राओं द्वारा सरस्वती वंदना तथा स्वागत गीत के द्वारा कार्यक्रम को आगे बढ़ाया गया। पारंपरिक औपचारिकताओ के अंतर्गत बैज अलंकरण तथा नवीन प्राचार्य प्रोफेसर डीएस नेगी का विभागीय प्राध्यापकों द्वारा पुष्प गुच्छ देकर स्वागत किया गया । स्वागतोपरांत विधि विधान पूर्वक वैदिक मंत्र उच्चारण के साथ शिवार्चन अनुष्ठान किया गया। तत्पश्चात छात्र छात्राओं द्वारा वैदिक तथा लौकिक मंत्रों के साथ-साथ संस्कृत गीतों तथा श्लोको का भी गायन किया गया। तत्पश्चात शिवार्चन के माध्यम से प्रभु शिव की आराधना संपन्न हुई जिससे महाविद्यालय का संपूर्ण वातावरण शिवमय हो गया ।
प्राचार्य डीएस नेगी ने अपने उद्बोधन में छात्र छात्राओं को संबोधित करते हुए कहा कि संस्कृत समस्त भाषाओं की जननी है। उन्होंने सर्वे भवंतु सुखिनः, वसुधैव कुटुंबकम तथा कालिदास के अनेकों उदाहरण जैसे कविल्ठा नामक ग्राम, कण्व नगरी कोटद्वार में कालिदास द्वारा अभिज्ञान शाकुंतलम के सातों अंको का तथा चतुर्थ अंक को सर्वोत्तम बताते हुए छात्राओं को संस्कृत के प्रति प्रेरित किया । वनस्पति विज्ञान के वरिष्ठ प्राध्यापक प्रोफेसर एमडी कुशवाहा ने अपने कथन में शिव की महिमा का गुणगान करते हुए संस्कृत विषय को सर्वोत्तम बताया तथा साथ ही उन्होंने स्वरचित कविता के माध्यम से शिवार्चन को सुशोभित शिखर शशि वक्ररूपम, चारु गंगा हुई शांताधारी, प्रियम शिवम पावन पार्वती, अप्रतिम सदा जगत की उद्गामिनी, सुशोभित शिखर शशि वक्ररूपम, चारु गंगा हुई शांताधारी कहकर परिभाषित किया।