देहरादून। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के ऐलान के बाद मुख्य सचिव राधा रतूड़ी के द्वारा 250 वर्ग मीटर से ज्यादा जमीन बाहरी प्रदेशों के परिवारों के द्वारा यदि एक सदस्य ज्यादा खरीदी गई है,तो इसकी रिपार्ट उपलब्ध कराने के निर्देश सभी जिलों के जिला अधिकारियों को दिए गए है, साथ ही यदि किसी संस्था या उघोग लगाने के नाम पर यदि जमीन खरीदी गई है और उसका उपयोग उसे उद्देश्य से नहीं हो रहा है जिस उद्देश्य से जमीन खरीदी गई है तो उसकी रिपोर्ट भी उपलब्ध कराने के निर्देश मुख्य सचिव के द्वारा दिए गए हैं।
मुख्य सचिव का कहना है कि उपरोक्त विषय के संबंध में जैसा कि आप संज्ञानित हैं, राज्य में उत्तराखण्ड (उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश और भूमि व्यवस्था अधिनियम, 1950) (अनुकूलन एवं उपान्तरण आदेश, 2001) प्रचलित है, जिसमें समय-समय पर उत्तराखण्ड राज्य के परिप्रेक्ष्य में संशोधन किये गये हैं, यथाः उत्तराखण्ड अधिनियम संख्या 03, वर्ष 2007 के द्वारा उक्त अधिनियम की धारा 154 (4)(1)(क) में किये गये संशोधन के अनुसार, कोई भी व्यक्ति स्वयं या अपने परिवार आवासीय प्रयोजन हेतु बिना किसी अनुमति के अपने जीवन काल में अधिकतम 250 वर्ग मीटर भूमि क्रय कर सकता है, परंतु ऐसा संज्ञान में आया है कि एक ही परिवार के सदस्यों द्वारा पृथक-पृथक भूमि क्रय करके उक्त प्राविधानों का उल्लंघन किया जा रहा है।
उक्त के अनुक्रम में उत्तराखण्ड (उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश और भूमि व्यवस्था अधिनियम, 1950) (अनुकूलन एवं उपान्तरण आदेश, 2001) (संशोधन) अधिनियम, 2007 की धारा 154(4)(1)(क) के उल्लंघन के प्रकरणों में नियमानुसार परीक्षण करते हुए, यथोचित विधिक कार्यवाही किया जाना है तथा कृत कार्यवाही से राजस्व परिषद् उत्तराखण्ड के माध्यम से शासन को अवगत कराया जाना है।
2. यह भी संज्ञान में आया है कि उक्त अधिनियम की धारा 154 (4)(3) के अधीन अनुमति प्राप्त कर, क्रय की गयी भूमि का कतिपय क्रेताओं द्वारा निर्धारित प्रयोजन हेतु उपयोग नहीं किया जा रहा है। अतः इस संबंध में ‘उत्तराखण्ड (उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश एवं भूमि व्यवस्था अधिनियम, 1950) (अनुकूलन एवं उपान्तरण आदेश, 2001) (संशोधन) अधिनियम, 2003 की धारा की धारा-154(4)(3) के अन्तर्गत दी गयी भूमि क्रय की अनुमति के सापेक्ष जिन क्रेताओं द्वारा भूमि का निर्धारित प्रयोजन हेतु उपयोग नहीं किया गया है, के संबंध में विवरण / सूचना निम्नलिखित प्रारूप पर राजस्व परिषद् उत्तराखण्ड के माध्यम से शासन को एक सप्ताह के भीतर अनिवार्य रूप से उपलब्ध करायें।
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